प्यार आपका मुझे जीना सिखा दिया |
यूँ तो मौज में, "राही", चलते रहे हम,
लड़खड़ाकर मंजिल चढ़ते रहे हम,
न खोने का डर, न किसी मंजिल की जकड़,
स्वछन्द मन की पुकार सुनते रहे हम,
आपकी आँखों ने शरमाना सिखा दिया,
प्यार आपका मुझे जीना सिखा दिया |
किस्से सुने थे कई, बेपनाह मुहोब्बत के,
हीर-राँझा, देवी राधा, देवी मीरा के समर्पण के,
हम भी उसी नक्से, कदम पर चलने वाले थे,
तलाश कर, खुद को समर्पित करने वाले थे,
मौत से भी, न डरा जिसने उसे डरना सिखा दिया,
प्यार आपका मुझे जीना सिखा दिया |
अब से सावन में झुला झूले हम,
मुस्कान देखकर हर दर्द भूले हम,
दोनों का प्यारा जिसे गोदी में लेकर,
प्यार से घुमाये, गालों को चूमे हम,
जितना भी जी लूँ साथ तेरे जैसे कम ही लगता है,
चंचल मन को तेरी बाँहों ने ठहरना सिखा दिया,
प्यार आपका मुझे जीना सिखा दिया |
कविता: अम्बिका "राही"
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