तुझे जब भी गले लगाया, खुद को शून्य पाया हूँ | Ambika Rahee | अम्बिका राही
तुझे जब भी गले लगाया, खुद को शून्य पाया हूँ |
एक नजर ही देखा, लगा ठहर सा गया हूँ,
खुद को भूलकर तुझमें, खो सा गया हूँ,
हां याद है, ए सिलसिला कई महीनो चला था,
तुम मुस्कराती तो लगता, रिश्ता कई जन्मो से जुड़ा है ,
ए बातें याद करके ख़ुद को ख़ुश पाया हूँ,
तुझे जब भी गले लगाया, खुद को शून्य पाया हूँ |
तुम आज भी न बदले न बदला प्यार तुम्हारा,
मुहब्बत हुई जबसे, संसार लगता है अपना सारा,
समर्पित है तुझको, मेरा हर गुनगुनाना,
तू मुस्कुरा दे तो समझूँ मिल गया है खजाना,
तुम को पाया तो जैसे ख़ुदा पाया हूँ,
तुझे जब भी गले लगाया, खुद को शून्य पाया हूँ |
-अम्बिका "राही"
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