दारा की न दौर यह, रार नहीं खजुबे की,
बाँधिबो नहीं है कैंधो मीर सहवाल को.
मठ विश्वनाथ को, न बास ग्राम गोकुल को,
देवी को न देहरा, न मंदिर गोपाल को.
गाढ़े गढ़ लीन्हें अरु बैरी कतलाम कीन्हें,
ठौर ठौर हासिल उगाहत हैं साल को.
बूड़ति है दिल्ली सो सँभारे क्यों न दिल्लीपति,
धक्का आनि लाग्यौ सिवराज महाकाल को
- भूषण - Bhushan
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