भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bhartendu Harishchandra Biography
जब आप पांच साल के थे तो आपकी माता जी और दस वर्ष की अवस्था में आपके पिता जी की मृत्यु हो गयी । आपका बचचन बहुत संघर्षो से बीता |
आपने परिस्थितियों से लड़ कर क्वींस कॉलेज में दाखिला लिया, आपकी सोचने समझने और याद करने की शक्ति बहुत अच्छी थी, जिसके कारण हर परीक्षा में आप आगे बढ़ते चले गए, और साथ ही आपने कई भाषावो का अध्ययन भी किया जिसमें - अंग्रेजी, संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू आदि सामिल है |
आपके बहुत ज्यादा साहित्यिक योगदान के कारण ही १८५७ से लेकर १९०० तक का काल भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है |
मुख्य रचनाएँ:
आपने बहुत से नाटक की रचना की जो निम्नलिखित है :
वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति १८७३ ई प्रहसन , सत्य हरिश्चंद १९७५ , श्री चन्द्रावली १८७६ , भारत दुर्दशा १८८० , नीलदेवी१८८१, अंधेर नगरी १८८१, प्रेम जोगिनी १८७५,
अनुवाद : बाँग्ला से 'विद्यासुंदर' (नाटक), संस्कृत से 'मुद्राराक्षस' (नाटक), और प्राकृत से 'कपूरमंजरी' (नाटक), दुर्लभ बंधू १८८०- शेक्सपियर के "मर्चेंट ऑफ़ वेनिश" का अनुवाद
काव्य कृतियाँ: भक्त-सर्वस्व, प्रेम-मालिका, प्रेम-माधुरी, प्रेम-तरंग, उत्तरार्द्ध-भक्तमाल, प्रेम-प्रलाप, गीत-गोविंदानंद, दानलीला, संस्कृत लावनी, सुमनांजलि, होली, मधु-मुकुल, राग-संग्रह, वर्षा-विनोद, विनय प्रेम पचासा, फूलों का गुच्छा, प्रेम-फुलवारी, कृष्णचरित्र ऐसे बहुत से रचनाआओ की आपने रचना की |
निधन: 6 जनवरी 1885 को वाराणसी या कशी में ही आपका निधन हो गया।
परिहासिनी
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की लघु हास्य-व्यंग्य से भरपूर - परिहासिनी आपकी रचना एक उल्लेखनीय रचनावो में से एक है ।
मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है |
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