एक अजनबी, हसीना से, यूँ मुलाकात, हो गई
फिर क्या हुआ, ये ना पूछो, कुछ ऐसी बात, हो गई
एक अजनबी ...
वो अचानक आ गई, यूँ नज़र के सामने
जैसे निकल आया घटा से चाँद
चेहरे पे ज़ुल्फ़ें, बिखरी हुई थीं
दिन में रात हो गई
एक अजनबी ...
जान-ए-मन जान-ए-जिगर, होता मैं शायर अगर
कहता ग़ज़ल तेरी अदाओं पर
मैं ने ये कहा तो, मुझसे ख़फ़ा वो
जान-ए-हयात हो गई
एक अजनबी ...
खूबसूरत बात ये, चार पल का साथ ये
सारी उमर मुझको रहेगा याद
मैं अकेला था मगर, बन गई वो हमसफ़र
वो मेरे साथ हो गई
एक अजनबी ...
- आनंद बख्शी- Anand Bakshi
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