और क्या अहद-ए-वफ़ा होते हैं
लोग मिलते हैं जुदा होते हैं
कब बिछड़ जाये हमसफ़र ही तो है
कब बदल जाये इक नज़र ही तो है
जान-ओ-दिल जिसपे फ़िदा होते हैं
और क्या अहद-ए-वफ़ा होते हैं ...
बात निकली थी इस ज़माने की
जिसको आदत है भूल जाने की
आप क्यों हमसे खफ़ा होते हैं
और क्या अहद-ए-वफ़ा होते हैं ...
जब रुला लेते हैं जी भर के हमें
जब सता लेते हैं जी भर के हमें
तब कहीं खुश वो ज़रा होते हैं
और क्या अहद-ए-वफ़ा होते हैं ...
- आनंद बख्शी- Anand Bakshi
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