पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे॥ध्रु०॥
कलम धरत मेरा कर कांपत। नयनमों रड छायो॥१॥
हमारी बीपत उद्धव देखी जात है। हरीसो कहूं वो जानत है॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल रहो छाये॥३॥
- मीराबाई- Meera Bai
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