मोहन आवनकी साई किजोरे। आवनकी मन भावनकी॥ कोई०॥ध्रु०॥
आप न आवे पतिया न भेजे | ए बात ललचावनकी॥को०॥१॥
बिन दरशन व्याकुल भई सजनी। जैशी बिजलीयां श्रावनकी॥ को०॥२॥
क्या करूं शक्ति जाऊं मोरी सजनी। पांख होवे तो उडजावनकी॥ को०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर | इच्छा लगी हरी बतलावनकी॥ को०॥४॥
- मीराबाई- Meera Bai
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