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Saturday, July 25, 2020

नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किना- मीराबाई- Meera Bai #www.poemgazalshayari.in #Poem #Gazal #Shayari #Hindi Kavita #Shayari #Love shayari

नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किना०॥ध्रु०॥
नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव॥१॥
ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पाव॥३॥

पानी में मीन प्यासी। मोहे सुन सुन आवत हांसी॥ध्रु०॥
आत्मज्ञानबिन नर भटकत है। कहां मथुरा काशी॥१॥
भवसागर सब हार भरा है। धुंडत फिरत उदासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सहज मिळे अविनशी॥३॥


कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी। तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं॥ध्रु०॥
दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥ काना०॥१॥
सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥ काना०॥२॥
सास बुरीरे ननंद हटेली। देवर देवे मोको गारी॥ काना०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी॥ काना०॥४॥


हरि गुन गावत नाचूंगी॥ध्रु०॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥

झुलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥ध्रु०॥
अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥ गिरि०॥१॥
लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥ गिरि०॥२॥
नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥ गिरि०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकू दंग॥ गिरि०॥४॥


कृष्ण करो जजमान॥ प्रभु तुम॥ध्रु०॥
जाकी किरत बेद बखानत। सांखी देत पुरान॥ प्रभु०२॥
मोर मुकुट पीतांबर सोभत। कुंडल झळकत कान॥ प्रभु०३॥
मीराके प्रभू गिरिधर नागर। दे दरशनको दान॥ प्रभु०४॥

तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारीरे॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पीतांबर सोभे। कुंडलकी छबी न्यारीरे॥ तुम०॥१॥
भरी सभामों द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥ तुम०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारीरे॥ तुम०॥३॥

हातकी बिडिया लेव मोरे बालक। मोरे बालम साजनवा॥ध्रु०॥
कत्था चूना लवंग सुपारी बिडी बनाऊं गहिरी।
केशरका तो रंग खुला है मारो भर पिचकारी॥१॥
पक्के पानके बिडे बनाऊं लेव मोरे बालमजी।
हांस हांसकर बाता बोलो पडदा खोलोजी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर बोलत है प्यारी।
अंतर बालक यारो दासी हो तेरी॥३॥


किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥
मोर मुकुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत हीरा॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल बलहारा॥३॥

शाम मुरली बजाई कुंजनमों॥ध्रु०॥
रामकली गुजरी गांधारी। लाल बिलावल भयरोमों॥१॥
मुरली सुनत मोरी सुदबुद खोई। भूल पडी घरदारोमों॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। वारी जाऊं तोरो चरननमों॥३॥

माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल॥ध्रु०॥
कोई कहे हलका कोई कहे भारी। लियो है तराजू तोल॥ मा०॥१॥
कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥ मा०॥२॥
ब्रिंदाबनके जो कुंजगलीनमों। लियों बंजंता ढोल॥ मा०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। पुरब जनमके बोल॥ मा०॥४॥


राधा प्यारी दे डारोजी बनसी हमारी।
ये बनसीमें मेरा प्रान बसत है वो बनसी गई चोरी॥१॥
ना सोनेकी बन्सी न रुपेकी। हरहर बांसकी पेरी॥२॥
घडी एक मुखमें घडी एक करमें। घडी एक अधर धरी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलपर वारी। राधा प्यारी दे०॥४॥


मोरे लय लगी गोपालसे मेरा काज कोन करेगा।
मेरे चित्त नंद लालछे॥ध्रु०॥१॥
ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों। मैं जप धर तुलसी मालछे॥२॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गला मोतनके माल छे॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुट गई जंजाल छे॥४॥

दीजो हो चुररिया हमारी। किसनजी मैं कन्या कुंवारी॥ध्रु०॥
गौलन सब मिल पानिया भरन जाती। वहंको करत बलजोरी॥१॥
परनारीका पल्लव पकडे। क्या करे मनवा बिचारी॥२॥
ब्रिंद्रावनके कुंजबनमों। मारे रंगकी पिचकारी॥३॥
जाके कहती यशवदा मैया। होगी फजीती तुम्हारी॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके है लहरी॥५॥


हरि तुम कायकू प्रीत लगाई॥ध्रु०॥
प्रीत लगाई पर दुःख दीनो। कैशी लाज न आई॥ ह०॥१॥
गोकुल छांड मथुराकु जावूं। वामें कौन बढाई॥ ह०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुमकूं नंद दुवाई॥ हरि०॥३॥

पिहुकी बोलिन बोल पपैय्या॥ध्रु०॥
तै खोलना मेरा जी डरत है। तनमन डावा डोल॥ पपैय्या०॥१॥
तोरे बिना मोकूं पीर आवत है। जावरा करुंगी मैं मोल॥ पपैय्या०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। कामनी करत कीलोल॥ पपैय्या०॥३॥

चरन रज महिमा मैं जानी। याहि चरनसे गंगा प्रगटी।
भगिरथ कुल तारी॥ चरण०॥१॥
याहि चरनसे बिप्र सुदामा। हरि कंचन धाम दिन्ही॥ च०॥२॥
याहि चरनसे अहिल्या उधारी। गौतम घरकी पट्टरानी॥ च०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलसे लटपटानी॥ चरण०॥४॥

बन्सी तूं कवन गुमान भरी॥ध्रु०॥
आपने तनपर छेदपरंये बालाते बिछरी॥१॥
जात पात हूं तोरी मय जानूं तूं बनकी लकरी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर राधासे झगरी बन्सी॥३॥

लाज रखो तुम मेरी प्रभूजी। लाज रखो तुम मेरी॥ध्रु०॥
जब बैरीने कबरी पकरी। तबही मान मरोरी॥ प्रभुजी०॥१॥
मैं गरीब तुम करुनासागर। दुष्ट करत बलजोरी॥ प्रभुजी०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुम पिता मैं छोरी॥ प्रभुजी०॥३॥

- मीराबाई- Meera Bai

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