मन अटकी मेरे दिल अटकी। हो मुगुटकी लटक मन अटकी॥ध्रु०॥
माथे मुकुट कोर चंदनकी। शोभा है पीरे पटकी॥ मन०॥१॥
शंख चक्र गदा पद्म बिराजे। गुंजमाल मेरे है अटकी॥ मन०॥२॥
अंतर ध्यान भये गोपीयनमें। सुध न रही जमूना तटकी॥ मन०॥३॥
पात पात ब्रिंदाबन धुंडे। कुंज कुंज राधे भटकी॥ मन०॥४॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। सुरत रही बनशी बटकी॥ मन०॥५॥
फुलनके जामा कदमकी छैया। गोपीयनकी मटुकी पटकी॥ मन०॥६॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जानत हो सबके घटकी॥ मन अटकी०॥७॥
- मीराबाई- Meera Bai
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