तुझे फ़ासले का जो शौक़ है, बड़े काम का है वो तेरा हुनर।
तुझे कहना क्या के तू ये न कर, तुझे कहना क्या के तू वो न कर।
दो तरह के सच में जो फ़र्क है, उसे रहने दे के न रहने दे,
मर्ज़ी का अपने ख़ुदा है तू, तेरा दिल करे जो, वो कर गुज़र।
फ़रियाद करता रहा, ज़रा तू सम्भल के चल, तू सम्भल के चल,
तेरे लफ़्ज़-लफ़्ज़ नशे में हैं, यू न डगमगा मेरे रहगुज़र।
तेरा दर ख़ुदा का तो दर नहीं, घर मेरा भी कहाँ मेरा घर,
इतनी इनायत सब पे हो के फिरे नहीं कोई दर-ब-दर।
जिस दिन से उल्टी हवा चली, तेरे ख़ुद के होश उड़े हुए,
आकाश से नहीं पूछ तू के इधर उड़ें के उड़ें उधर।
आबेहयात पे है तू फ़िदा, तेरी गफ़लतों का सुरूर जो,
किसी और की मौत से ले सबक, हँस-हँस के यूँ न पी ज़हर।
- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi
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