सूरज दौड़ लगाता दिन-भर।
और चंद्रमा रात-रात भर।
पर मैं ज्यादा खेलूँ-दौड़ूँ
बिना बात पीट जाता अक्सर।
माँ, मेरे थोड़े ऊधम से,
तुमको होता है सिर दर्द।
सूरज-चंदा जब देखो तब,
नभ में खूब उड़ाते गर्द।
तुमने कभी न देखे होंगे,
उन दोनों के खिचते कान।
मुँह लटकाए बैठे हों वे,
होमवर्क खाता हो जान।
क्या किस्मत है, सिर्फ दौड़कर
जग में पाते ऊँचा मान।
चंदा-सूरज दौड़ लगाते,
मैं जबरन पढ़ाई में ध्यान।
- उषा यादव- Usha Yadav
#www.poemgazalshayari.in
||Poem|Gazal|Shaayari|Hindi Kavita|Shayari|Love||
Please Subscribe to our youtube channel
https://www.youtube.com/channel/UCdwBibOoeD8E-QbZQnlwpng/videos?view_as=subscriber
No comments:
Post a Comment