नातो नामको जी म्हांसूं तनक न तोड्यो जाय॥
पानां ज्यूं पीली पड़ी रे, लोग कहैं पिंड रोग।
छाने लांघण म्हैं किया रे, राम मिलण के जोग॥
बाबल बैद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई म्हांरी बांह।
मूरख बैद मरम नहिं जाणे, कसक कलेजे मांह॥
जा बैदां, घर आपणे रे, म्हांरो नांव न लेय।
मैं तो दाझी बिरहकी रे, तू काहेकूं दारू देय॥
मांस गल गल छीजिया रे, करक रह्या गल आहि।
आंगलिया री मूदड़ी (म्हारे) आवण लागी बांहि॥
रह रह पापी पपीहडा रे,पिवको नाम न लेय।
जै कोई बिरहण साम्हले तो, पिव कारण जिव देय॥
खिण मंदिर खिण आंगणे रे, खिण खिण ठाड़ी होय।
घायल ज्यूं घूमूं खड़ी, म्हारी बिथा न बूझै कोय॥
काढ़ कलेजो मैं धरू रे, कागा तू ले जाय।
ज्यां देसां म्हारो पिव बसै रे, वे देखै तू खाय॥
म्हांरे नातो नांवको रे, और न नातो कोय।
मीरा ब्याकुल बिरहणी रे, (हरि) दरसण दीजो मोय॥
शब्दार्थ :- मोसूं =मुझको। पानां ज्यूं = पत्तों की भांति। पिंडरोग =पाण्डु रोग इस रोग में रोगी बिलकुल पीला पड़ जाता है। छाने = छिपकर। लांघण =लंघन,उपवास। बाबल = बाबा, पिता। करक = पीड़ा। दाझी = जली हुई। छीज्या =क्षीण हो गया। मूंदड़ो =मुंदरी, अंगूठी। बांहीं =भुजा। साम्हले =सुन पायेगी। खिण =क्षण भर। देसां =देशों में। खाई =खा लेना।
- मीराबाई- Meera Bai
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