कोई गद्दी गया छोड़ है,
भीतर-भीतर लगी होड़ है,
जोड़-तोड़, भई, जोड़-तोड़ है ।
चित्तू चित्त पड़े पयताने,
हाँफ रहे बेवजह फलाने,
दाद-खाज में नया कोढ़ है,
जोड़-तोड़, भई, जोड़-तोड़ है ।
कैसे गद्दी पर चढ़ जाऊँ-पाऊँ,
फिर जी-भर के मुफ़्त का खाऊँ
बस, इतना भर का निचोड़ है,
जोड़-तोड़, भई, जोड़-तोड़ है ।
दन्नूजी चढ़ गए अटारी,
सन्नूजी गा रहे लचारी,
मन्नू चाहे तोड़-फोड़ है,
जोड़-तोड़, भई, जोड़-तोड़ है ।
खुत्थड़ को थुत्थड़ थुथकारे,
बात-बात पर ताने मारे,
आने वाला नया मोड़ है,
जोड़-तोड़, भई, जोड़-तोड़ है ।
- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi
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