हम उसकी नहीं सुनते,
जो मृगछौने की खाल पर पालथी मारे हुए
हमे अहिंसा का पाठ पढ़ाता है,
हम उसकी नहीं सुनते,
जो चीख़ते आदमी का हक़ छीनकर
बेजुबान पत्थर पर पुआ-पुड़ी चढ़ाता है,
लोथिल मुस्कान और ख़ून-ख़ून आँखें,
हम नहीं सुनते उस आदमख़ोर का बयान
जिसकी भाषा मुँहजोरी की है, संस्कृति तिजोरी की है
हू-ब-हू दरिन्दे-सा लाशों पर आता है, लाशों पर जाता है,
आदमी की दुनिया में आदमी को खाता है
हम उसकी नहीं सुनते!
- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi
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