एक रिश्ते में ख़ुशी के ढंग कितने।
दोस्ती में दुश्मनी के रंग कितने।
जिस ग़ज़ल की वाहवाही हो रही थी,
आज उसके काफ़िये हैं तंग कितने।
हाथ थामे जो अकेले चल पड़ा था,
रह गए पीछे न जाने संग कितने।
जागती आँखें जो सपने देखती थीं,
उनके सच से रह गए हम दंग कितने।
बन्द पन्नों की इबारत बाँचना क्या,
लिखे थे ख़त वक़्त ने बैरंग कितने।
- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi
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