दरस बिनु दूखण लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन॥
सबद सुणत मेरी छतियां कांपे, मीठे लागे बैन।
बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन॥
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभू कब र मिलोगे, दुखमेटण सुखदैन॥
शब्दार्थ :- सुणत =याद आते ही। बहगई करवत =जैसे आरी चल गई। मेटण = मेटनेवाले। दैण =देनेवाले।
- मीराबाई- Meera Bai
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