बहुरि नहिं आवना या देस ॥
जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नाहिं सॅंस ॥ १॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस ॥ २॥
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ॥ ३॥
जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस ॥ ४॥
चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस ॥ ५॥
ज्ञानी, गुनी, चतुर अरु कविता, राजा रंक नरेस ॥ ६॥
कोइ राम कोइ रहिम बखानै, कोइ कहै आदेस ॥ ७॥
नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूऊंढि फिरें चहुँ देस ॥ ८॥
कहै कबीर अंत ना पैहो, बिन सतगुरु उपदेश ॥ ९॥
कबीर- Kabir
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