अजनबी बनता है क्यों, तू कोई बेगाना नहीं।
फिर न कहना कि मुझे भूल से पहचाना नहीं।
मेरे दर पर लिखा है नाम तेरा भी, पढ़ना
मेरा घर, घर है, आने-जाने का बहाना नहीं।
जा रहा हूँ तेरे शब्दों की बेयक़ीनी से,
मेरे शब्दों के मुझे मायने समझाना नहीं।
इम्तिहानों की इबारत नहीं झूठी होती,
टेढ़ी-मेढ़ी-सी लिखावट पे मेरे जाना नहीं।
जाने क्यों आदमीयत से मेरा याराना है,
मेरी इस एक अदद लत से ख़ौफ़ खाना नहीं।
मुझको लगता है, बड़ी दूर का चला है तू
क़दम बहक न जाएँ, देखना गिर जाना नहीं।
- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi
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