आस-पास मँडराती चिड़िया,
कटे पेड़ तक आती चिड़िया।
कहाँ घोंसला ढढूँ अपना,
मन मसोस, उड़ जाती चिड़िया।
रोज प्रभाती गाती चिड़िया।
दना चुगने जाती चिड़िया।
और लौटकर बच्चों के मुँह,
चुग्गा दे हरषाती चिड़िया।
किन्तु आज अकुलाती चिड़िया।
बस आँसू टपकाती चिड़िया।
काटा पेड़ देखे चुप होकर,
कुछ भी समझ न पाती चिड़िया।
किस दरवाजे जाए चिड़िया,
निज दुख किसे सुनाए चिड़िया।
कटते रहे पेड़ यदि यों ही,
तो घर कहाँ बनाए चिड़िया?
- उषा यादव- Usha Yadav
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