आप आए नहीं हैं मुद्दत से, होश में हैं कि नहीं।
डगमगाए नहीं हैं मुद्दत से, होश में हैं कि नहीं।
जाम छलका नहीं कि आग-सी लग जाती थी
दिल जलाए नहीं मुद्दत से, होश में हैं कि नहीं।
लड़खड़ाते थे तो मयख़ाना थरथराता था,
चोट खाए नहीं हैं मुद्दत से, होश में हैं कि नहीं।
भीग कर दर्द की बारिश में बहक जाते थे,
पी के छाए नहीं हैं मुद्दत से, होश में हैं कि नहीं।
लफ़्ज़ वो लाज़वाब, तरन्नुम तक़रीरों का
गुनगुनाए नहीं हैं मुद्दत से, होश में हैं कि नहीं।
- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi
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