आज नयन के बँगले में
संकेत पाहुने आये री सखि!
जी से उठे
कसक पर बैठे
और बेसुधी-
के बन घूमें
युगल-पलक
ले चितवन मीठी,
पथ-पद-चिह्न
चूम, पथ भूले!
दीठ डोरियों पर
माधव को
बार-बार मनुहार थकी मैं
पुतली पर बढ़ता-सा यौवन
ज्वार लुटा न निहार सकी मैं !
दोनों कारागृह पुतली के
सावन की झर लाये री सखि!
आज नयन के बँगले में
संकेत पाहुने आये री सखि !
- माखनलाल चतुर्वेदी - Makhan Lal Chaturvedi
#www.poemgazalshayari.in
No comments:
Post a Comment