मैं आज कहाँ जाऊँगी?
आज कहाँ जाना पड़ेगा!
फ़ुटपाथ गंगा के पास, मधुसूदन की समाधि पर
किसी शिशु के शव में
टेराकोटा ढूँढ़ने।
गाँव के विधुर चाँद के उजास में
ग्राम-फ़कीर के सिरहाने जागते हैं
लोकश्रुत नारी अथवा पीले गेन्दे के फूल
गीत गाते हैं
निषिद्ध अंचल से उठ आए
भोर के अन्धकार में जो सब मुण्डे हुए सिर,
बच्चों के झुण्ड, उनके घर का कोई ठिकाना नहीं।
जिस तरह सरहद पार कर आ जाती हैं भेड़ें
मैं उनके पास जाऊँगी।
समाज-सेवा के नाम पर
मैं अब और नहीं जाऊँगी तालिबानों के युद्ध में।
पाण्डू और माद्री के घायल हिरण के जोड़े के समान मृत्यु
आज भी क्यों सूर्यहीन निराकाश जनपद में
गूँज रही है?
जलहीन सूर्यहीन केवल
स्तुति और कामना के आकर्षण में
कमल के पत्तों पर जगमगाती रहती है।
कल की गुप्त गली में
चोग़ा पहने किसी ख़ूनी की तसवीर
इण्टरनेट पर दिखाई देगी।
जिस तरह हो-हो की आवाज़ें
सत्यद्रष्टा आँखों में सलाइयाँ चुभोकर
पढ़ती हैं भारत का संविधान। पोखरन के तथ्यों का प्रवाह;
गेंद के फूल,
ओ प्रिय गेंदे के फूल,
घर से भागकर
आज मैं भला कितनी दूर जा सकूँगी?
- अनुराधा महापात्र - Anuradha Mahapatra
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