खुब गए
दूधिया निगाहों में
फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर
धँस गए
कुसुम-कोमल मन में
गुट्ठल घट्ठोंवाले कुलिश-कठोर पैर
दे रहे थे गति
रबड़-विहीन ठूँठ पैडलों को
चला रहे थे
एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र
कर रहे थे मात त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को
नाप रहे थे धरती का अनहद फासला
घण्टों के हिसाब से ढोये जा रहे थे !
देर तक टकराए
उस दिन इन आँखों से वे पैर
भूल नहीं पाऊंगा फटी बिवाइयाँ
खुब गईं दूधिया निगाहों में
धँस गईं कुसुम-कोमल मन में
- नागार्जुन - Nagarjuna
#poemgazalshayari.in
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