असमान है युद्ध — और पुनःश्रुतिमय है हृदय की ऊष्णता
अन्धकार से उभर आता है अविराम इकतारा
उठ आते हैं शब्दों के अंकुर;
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण से उतर आए
सेब-जैसा बनने, पेड़ बनने का कभी मत कहना।
अपनी गहनता में जिस तरह रहते हैं
सहजन के फूल,
शान्त और सुरभित — ठीक वैसे ही
वर्षा के भीतर श्मशान की
आर्त-ममता
राख की ढेरी को ठेलकर उठ आए
अज्ञात नए पत्ते
कुछ पुरातन-कलश की कोमलता, झरे हुए विश्वास;
पागल हवा की माटी
अनिर्णेय लहूलुहान ओसकणों को
समझ पाती है!
- अनुराधा महापात्र - Anuradha Mahapatra
#www.poemgazalshayari.in
No comments:
Post a Comment