याद अश्कों में बहा दी हम ने
आ कि हर बात भुला दी हम ने
गुलशन-ए-दिल से गुज़रने के लिए
ग़म को रफ़्तार-ए-सबा दी हम ने
अब उसी आग में जलते हैं जिसे
अपने दामन से हवा दी हम ने
दिन अँधेरों की तलब में गुज़रा
रात को शम्मा जला दी हम ने
रह-गुज़र बजती है पायल की तरह
किस की आहट को सदा दी हम ने
क़स्र-ए-मआनी के मकीं थे फिर भी
तय न की लफ़्ज़ की वादी हम ने
ग़म की तशरीह बहुत मुश्किल थी
अपनी तस्वीर दिखा दी हम ने
गुलाम मोहम्मद क़ासिर - Ghulam Mohammad Kasir
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