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Friday, April 24, 2020

लो पौ फटी वह छुप गई तारों की अंज़ुमन - lo pau phatee vah chhup gaee taaron kee anzuman -- कैफ़ी आज़मी - Kaifi Azmi #poemgazalshayari.in

लो पौ फटी वह छुप गई तारों की अंज़ुमन
लो जाम-ए-महर से वह छलकने लगी किरन

खुपने लगा निगाह में फितरत का बाँकपन
जलवे ज़मीं पे बरसे ज़मीं बन गई दुल्हन

गूँजे तराने सुबह के इक शोर हो गया
आलम तमाम रस में सराबोर हो गया

फूली शफ़क फ़ज़ा में हिना तिलमिला गई
इक मौज़-ए-रंग काँप के आलम पे छा गई

कुल चाँदनी सिमट के गिलो में समा गई
ज़र्रे बने नुजूम ज़मीं जगमगा गई

छोड़ा सहर ने तीरगी-ए-शब को काट के
उड़ने लगी हवा में किरन ओस चाट के

मचली जबीने-शर्क पे इस तरह मौज-ए-नूर
लहरा के तैरने लगी आलम में बर्क-ए-तूर

उड़ने लगी शमीय छलकने लगा सुरूर
खिलने लगे शिगूके चहकने लगे तयूर

झोंके चले हवा के शजर झूमने लगे
मस्ती में फूल काँटों का मुँह चूमने लगे

थम थम के जूफ़िशाँ हुआ ज़र्रों पे आफ़ताब
छिड़का हवा ने सब्जा-ए-ख्वाबीदा पर गुलाब

मुरझायी पत्तियों में मचलने लगा शबाब
लर्ज़िश हुई गुलों में बरसने लगी शराब

रिन्दाने-मस्त और भी बदमस्त हो गये
थर्रा के होंठ ज़ाम में पेवस्त हो गये

दोशीज़ा एक खुशकदो-खुशरंगो-खूबरू
मालिन की नूरे-दीद गुलिस्ताँ की आबरू

महका रही है फूलों से दामान-ए-आरजू
तिफ़ली लिये है गोद में तूफ़ाने-रंगो-बू

रंगीनियों में खेली, गुलों में पली हुई
नौरस कली में कौसे-कज़ह है ढली हुई

मस्ती में रुख पे बाल-ए-परीशाँ किये हुये
बादल में शमा-ए-तूर फ़रोज़ाँ किये हुये

हर सिम्त नक्शे-पा से चरागाँ किये हुये
आँचल को बारे-गुल से गुलिस्ताँ किये हुये

लहरा रही है बादे-सहर पाँव चूम के
फिरती है तीतरी सी गज़ब झूम झूम के

ज़ुल्फ़ों में ताबे-सुंबुले-पेचाँ लिये हुये
आरिज़ पे शोख रंगे-गुलिस्ताँ लिये हुये

आँखों में बोलते हुये अरमाँ लिये हुये
होठों पे आबे-लाले-बदख्शाँ लिये हुये

फितरत ने तौल तौल के चश्मे-कबूल में
सारा चमन निचोड़ दिया एक फूल में

ऐ हुस्ने-बेनियाज़ खुदी से न काम ले
उड़ कर शमीमे-गुल कहीं आँचल न थाम ले

कलियों का ले पयाम गुलों का सलाम ले
कैफ़ी से हुस्ने-दोस्त का ताज़ा कलाम ले

शाइर का दिल है मुफ़्त में क्यों दर्दमंद हो
इक गुल इधर भी नज़्म अगर यह पसंद हो

- कैफ़ी आज़मी - Kaifi Azmi


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