यह देने का अहंकार
छोड़ो ।
कहीं है प्यार की पहचान
तो उसे यों कहो :
'मधुर ये देखो
फूल । इसे तोड़ो;
घुमा-फिरा कर देखो,
फिर हाथ से गिर जाने दो :
हवा पर तिर जाने दो-
(हुआ करे सुनहली) धूल ।'
sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
#Poem Gazal Shayari
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