वह क्या लक्ष्य
जिसे पा कर फिर प्यास रह गयी शेष
बताने की, क्या पाया?
वह कैसा पथ-दर्शक
जो सारा पथ देख
स्वयं फिर आया
और साथ में-आत्म-तोष से भरा-
मान-चित्र लाया!
और वह कैसा राही
कहे कि हाँ, ठहरो, चलता हूँ
इस दोपहरी में भी, पर इतना बतला दो
कितना पैंडा मार
मिलेगी पहली छाया?
sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
#Poem Gazal Shayari
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