सूप का शायक़ हूँ, यख़नी होगी क्या
चाहिए कटलेट, यह कीमा क्या करूँ
लैथरिज की चाहिए, रीडर मुझे
शेख़ सादी की करीमा, क्या करूँ
खींचते हैं हर तरफ़, तानें हरीफ़
फिर मैं अपने सुर को, धीमा क्यों करूँ
डाक्टर से दोस्ती, लड़ने से बैर
फिर मैं अपनी जान, बीमा क्या करूँ
चांद में आया नज़र, ग़ारे-मोहीब
हाये अब ऐ, माहे-सीमा क्या करूँ
अकबर "इलाहाबादी" - Akbar "Allahabadi"
Poem Gazal Shayari
#poemgazalshayari
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