राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज जगत के सन्मुख,
अर्थ साम्य भी मिटा न सकता मानव जीवन के दुख।
व्यर्थ सकल इतिहासों, विज्ञानों का सागर मंथन,
वहाँ नहीं युग लक्ष्मी, जीवन सुधा, इंदु जन मोहन!
आज वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित,
खंड मनुजता को युग युग की होना है नव निर्मित,
विविध जाति, वर्गों, धर्मों को होना सहज समन्वित,
मध्य युगों की नैतिकता को मानवता में विकसित।
जग जीवन के अंतर्मुख नियमों से स्वयं प्रवर्तित
मानव का अवचेतन मन हो गया आज परिवर्तित।
वाह्य चेतनाओं में उसके क्षोभ, क्रांति, उत्पीड़न,
विगत सभ्यता दंत शून्य फणि सी करती युग नर्तन!
व्यर्थ आज राष्ट्रों का विग्रह, औ’ तोपों का गर्जन,
रोक न सकते जीवन की गति शत विनाश आयोजन।
नव प्रकाश में तमस युगों का होगा स्वयं निमज्जित,
प्रतिक्रियाएँ विगत गुणों की होंगी शनैः पराजित!
Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत
#Poem Gazal Shayari
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