मेरी छाती पर
हवाएं लिख जाती हैं
महीन रेखाओं में
अपनी वसीयत
और फिर हवाओं के झोंकों ही
वसीयतनामा उड़ाकर
कहीं और ले जाते हैं।
बहकी हवाओ !
वसीयत करने से पहले
हल्फ उठाना पड़ता है
कि वसीयत करने वाले के
होश-हवाश दुरूस्त हैं:
और तुम्हें इसके लिए
गवाह कौन मिलेगा
मेरे ही सिवा ?
क्या मेरी गवाही
तुम्हारी वसीयत से ज्यादा
टिकाऊ होगी ?
sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
#Poem Gazal Shayari
#Poem_Gazal_Shayari
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