इतराया यह और ज्वार का
क्वाँर की बयार चली,
शशि गगन पार हँसे न हँसे--
शेफाली आँसू ढार चली !
नभ में रवहीन दीन--
बगुलों की डार चली;
मन की सब अनकही रही--
पर मैं बात हार चली !
sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
#Poem Gazal Shayari
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