कोई मेला लगा है परबत पर
सब्ज़ाज़ारों पर चढ़ रहे हैं लोग
टोलियाँ कुछ रुकी हुईं ढलानों पर
दाग़ लगते हैं इक पके फल पर
दूर सीवन उधेड़ती-चढ़ती,
एक पगडंडी बढ़ रही है सब्ज़े पर !
चूंटियाँ लग गई हैं इस पहाड़ी को
जैसे अमरूद सड़ रहा है कोई !
गुलजार - Gulzar
-Poem Gazal Shayari
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