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Monday, January 27, 2020

देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा - dekho, aahista chalo, aur bhee aahista zara - - गुलज़ार – gulazaar –Poem Gazal Shayari

देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा
देखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना,
ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं.
काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में,
ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो,
जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा


- गुलज़ार - gulazaar

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