सांझ की लाली सुलग-सुलग कर बन गई काली धूल
आए न बालम बेदर्दी मैं चुनती रह गई फूल
रैन भई, बोझल अंखियन में चुभने लागे तारे
देस में मैं परदेसन हो गई जब से पिया सिधारे
पिछले पहर जब ओस पड़ी और ठन्डी पवन चली
हर करवट अंगारे बिछ गए सूनी सेज जली
दीप बुझे सन्नाटा टूटा बाजा भंवर का शंख
बैरन पवन उड़ा कर ले गई परवानों के पंख
-साहिर लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee
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