ख़ुद्दारियों के ख़ून को अरज़ाँ न कर सके
हम अपने जौहरों को नुमायाँ न कर सके
होकर ख़राब-ए-मय तेरे ग़म तो भुला दिये
लेकिन ग़म-ए-हयात का दरमाँ न कर सके
टूटा तलिस्म-ए-अहद-ए-मोहब्बत कुछ इस तरह
फिर आरज़ू की शमा फ़ुरेज़ाँ न कर सके
हर शय क़रीब आ के कशिश अपनी खो गई
वो भी इलाज-ए-शौक़-ए-गुरेज़ाँ न कर सके
किस दरजा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे
हम ज़िन्दगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके
मायूसियों ने छीन लिये दिल के वल-वले
वो भी निशात-ए-रूह का सामाँ न कर सके
-साहिर_लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee
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