अब कोई गुलशन ना उजड़े अब वतन आज़ाद है
रूह गंगा की हिमालय का बदन आज़ाद है
खेतियाँ सोना उगाएँ, वादियाँ मोती लुटाएँ
आज गौतम की ज़मीं, तुलसी का बन आज़ाद है
मंदिरों में शंख बाजे, मस्जिदों में हो अज़ाँ
शेख का धर्म और दीन-ए-बरहमन आज़ाद है
लूट कैसी भी हो अब इस देश में रहने न पाए
आज सबके वास्ते धरती का धन आज़ाद है
-साहिर लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee
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