देखा तो था यूं ही किसी ग़फ़लत–शिआर[1] ने
दीवाना कर दिया दिले–बेइख़्तियार ने
ऐ आर्ज़ू के धुंधले ख्वाबों! जवाब दो
फिर किसकी याद आई थी मुझको पुकारने?
तुमको ख़बर नहीं मगर इक सादालौह[2] को
बर्बाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने
मैं और तुमसे तर्के-मोहब्बत की[3] आरज़ू
दीवाना कर दिया है ग़मे-रोज़गार[4] ने
अब ऐ दिले-तबाह! तिरा क्या ख्याल है
हम तो चले थे काकुले-गेती[5] सँवारने
-साहिर लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee
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