वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए
वो कश्तियाँ जलाने वाले क्या हुए
वो सुबह आते-आते रह गई कहाँ
जो क़ाफ़िले थे आने वाले क्या हुए
मैं जिन की राह देखता हूँ रात भर
वो रौशनी दिखाने वाले क्या हुए
ये कौन लोग हैं मेरे इधर-उधर
वो दोस्ती निभाने वाले क्या हुए
इमारतें तो जल के राख हो गईं
इमारतें बनाने वाले क्या हुए
ये आप-हम तो बोझ हैं ज़मीन के
ज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए
- नासिर काज़मी- Nasir Kazmi
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