किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम
किसी का हाथ उठ्ठा और अलकों तक चला आया
वो बरगश्ता थे कुछ हमसे उन्हें क्योंकर यक़ीं आता
चलो अच्छा हुआ एहसास पलकों तक चला आया
जो हमको ढूँढने निकला तो फिर वापस नहीं लौटा
तसव्वुर ऐसे ग़ैर—आबाद हलकों तक चला आया
लगन ऐसी खरी थी तीरगी आड़े नहीं आई
ये सपना सुब्ह के हल्के धुँधलकों तक चला आया
- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar
किसी का हाथ उठ्ठा और अलकों तक चला आया
वो बरगश्ता थे कुछ हमसे उन्हें क्योंकर यक़ीं आता
चलो अच्छा हुआ एहसास पलकों तक चला आया
जो हमको ढूँढने निकला तो फिर वापस नहीं लौटा
तसव्वुर ऐसे ग़ैर—आबाद हलकों तक चला आया
लगन ऐसी खरी थी तीरगी आड़े नहीं आई
ये सपना सुब्ह के हल्के धुँधलकों तक चला आया
- दुष्यंत कुमार - Dushyant Kumar
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