हुस्न को दिल में छुपा कर देखो
ध्यान की शमा जला कर देखो
क्या खबर कोई दफीना मिल जाये
कोई दीवार गिरा कर देखो
फाख्ता चुप है बड़ी देर से क्यूँ
सरो की शाख हिला कर देखो
नहर क्यूँ सो गई चलते-चलते
कोई पत्थर ही गिरा कर देखो
दिल में बेताब हैं क्या-क्या मंज़र
कभी इस शहर में आ कर देखो
इन अंधेरों में किरन है कोई
शबज़दों आंख उठाकर देखो
- नासिर काज़मी- Nasir Kazmi
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