उसे तो कोई अकरब काटता है
कुल्हाड़ा पेड़ को कब काटता है
जुदा जो गोश्त[2] को नाख़ुन से कर दे
वो मसलक[3] हो के मशरब[4] काटता है
बहकने का नहीं इमकान[5] कोई
अकीदा[6] सारे करतब काटता है
कही जाती नहीं हैं जो ज़ुबाँ[7] से
उन्ही बातों का मतलब काटता है
वो काटेगा नहीं है खौफ़ इसका
सितम ये है के बेढब काटता है
तू होता साथ तो कुछ बात होती
अकेला हूँ तो मनसब[8] काटता है
जहाँ तरजीह[9] देते हैं वफ़ा को
ज़माने को वो मकतब[10] काटता है
उसे तुम ख़ून भी अपना पिला दो
मिले मौक़ा तो अकरब[11] काटता है
ये माना साँप है ज़हरीला बेहद
मगर वो जब दबे तब काटता है
अलिफ़,बे० ते० सिखाई जिस को आदिल
मेरी बातों को वो अब काटता है
- आदिल रशीद- aadil rasheed
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