लब[1] तिश्न-ओ-नोमीद[2] हैं हम अब के बरस भी
ऐ ठहरे हुए अब्रे-करम[3] अब के बरस भी
कुछ भी हो गुलिस्ताँ[4] में मगर कुंजे- चमन [5] में
हैं दूर बहारों के क़दम अब के बरस भी
ऐ शेख़-करम[6]! देख कि बा-वस्फ़े-चराग़ाँ[7]
तीरा[8] है दरो-बामे-हरम[9] अब के बरस भी
ऐ दिले-ज़दगान[10] मना ख़ैर, हैं नाज़ाँ[11]
पिंदारे-ख़ुदाई[12] पे सनम[13] अब के बरस भी
पहले भी क़यामत[14] थी सितमकारी-ए-अय्याम[15]
हैं कुश्त-ए-ग़म [16] कुश्त-ए-ग़म अब के बरस भी
लहराएँगे होंठों पे दिखावे के तबस्सुम[17]
होगा ये नज़ारा[18] कोई दम[19] अब के बरस भी
हो जाएगा हर ज़ख़्मे-कुहन [20] फिर से नुमायाँ[21]
रोएगा लहू दीद-ए-नम[22] अबके बरस भी
पहले की तरह होंगे तही[23] जामे-सिफ़ाली[24]
छलकेगा हर इक साग़रे-जम[25] अब के बरस भी
मक़्तल[26] में नज़र आएँगे पा-बस्त-ए-ज़ंजीर[27]
अहले-ज़रे-अहले-क़लम[28] अब के बरस भी
शब्दार्थ
होंठ
प्यासा और निराश
दया के बादल
उद्यान
उद्यान के कोने में
ईश्वर
बावजूद
अँधेरा
काबे के द्वार व छत
आहत हृदय
गर्वान्वित
ईश्वरीय गर्व
मूर्तियाँ
प्रलय, मुसीबत
समय का अत्याचार
दुख के मारे हुए
मुस्कुराहटें
दृश्य
कुछ समय
गहरा घाव
सामने आएगा
भीगे नेत्र
ख़ाली
मिट्टी के मद्य-पात्र
जमशेद नामी जादूगर का मद्यपात्र
वध-स्थल
बेड़ियों में जकड़े पैर
विद्वान व लेखक
-Ahamad Faraz - अहमद फ़राज़
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