कितना दुश्वार है जज़्बों की तिजारत करना
एक ही शख़्स से दो बार मोहब्बत करना
जिस को तुम चाहो कोई और न चाहे उस को
इस को कहते हैं मोहब्बत में सियासत करना
सुरमई आँख हसीं जिस्म गुलाबी चेहरा
इस को कहते हैं किताबत पे किताबत करना
दिल की तख़्ती पे भी आयात लिखी रहती हैं
वक़्त मिल जाए तो उन की भी तिलावत करना
देख लेना बड़ी तस्कीन मिलेगी तुम को
ख़ुद से इक रोज़ कभी अपनी शिकायत करना
जिस में कुछ क़ब्रें हों कुछ चेहरे हों कुछ यादें हों
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