खोखले नारों से दुनिया को बचाया जाए
आज के दिन ही हलफ इसका उठाया जाए
जब के मजदूर को हक उसका दिलाया जाए
योमें मजदूर उसी रोज़ मनाया जाए
ख़ुदकुशी के लिए कोई तो सबब होता है
कोई मर जाता है एहसास ये तब होता है
भूख और प्यास का रिश्ता भी अजब होता है
जब किसी भूखे को भर पेट खिलाया जाए
यौमें मजदूर उसी रोज़ मनाया जाए
अस्ल ले लेते हैं और ब्याज भी ले लेते हैं
कल भी ले लेते थे और आज भी ले लेते हैं
दो निवालों के लिए लाज भी ले लेते हैं
जब के हैवानों को इंसान बनाया जाये
यौमें मजदूर उसी रोज़ मनाया जाए
बे गुनाहों की सजाएँ न खरीदीं जाएँ
चन्द सिक्कों में दुआएँ न खरीदी जाएँ
दूध के बदले में माएँ ना खरीदी जाएँ
मोल ममता का यहाँ जब न लगाया जाये
यौमें मजदूर उसी रोज़ मनाया जाए
अदलो आदिल[1] कोई मजदूरों की खातिर आये
उनके हक के लिए कोई तो मुनाजिर [2] आये
पल दो पल के लिए फिर से कोई साहिर[3] आये
याद जब फ़र्ज़ अदीबों को दिलाया जाये
यौमें मजदूर उसी रोज़ मनाया जाए
यौमें मजदूर उसी रोज़ मनाया जाए
- आदिल रशीद- aadil rasheed
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