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Monday, July 15, 2019

हर दर्पन तेरा दर्पन है, हर चितवन तेरी चितवन है - har darpan tera darpan hai, har chitavan teree chitavan hai - Gopaldas "Neeraj" - गोपालदास "नीरज"

हर दर्पन तेरा दर्पन है, हर चितवन तेरी चितवन है, 
मैं किसी नयन का नीर बनूँ, तुझको ही अर्घ्य चढ़ाता हूँ !

नभ की बिंदिया चन्दावाली, भू की अंगिया फूलोंवाली,
सावन की ऋतु झूलोंवाली, फागुन की ऋतु भूलोंवाली, 
कजरारी पलकें शरमीली, निंदियारी अलकें उरझीली, 
गीतोंवाली गोरी ऊषा, सुधियोंवाली संध्या काली, 
हर चूनर तेरी चूनर है, हर चादर तेरी चादर है, 
मैं कोई घूँघट छुऊँ, तुझे ही बेपरदा कर आता हूँ !
हर दर्पन तेरा दर्पन है !!

यह कलियों की आनाकानी, यह अलियों की छीनाछोरी, 
यह बादल की बूँदाबाँदी, यह बिजली की चोराचारी, 
यह काजल का जादू-टोना, यह पायल का शादी-गौना, 
यह कोयल की कानाफूँसी, यह मैना की सीनाज़ोरी, 
हर क्रीड़ा तेरी क्रीड़ा है, हर पीड़ा तेरी पीड़ा है, 
मैं कोई खेलूँ खेल, दाँव तेरे ही साथ लगाता हूँ !
हर दर्पन तेरा दर्पन है !!

तपसिन कुटियाँ, बैरिन बगियाँ, निर्धन खंडहर, धनवान महल,
शौकीन सड़क, गमग़ीन गली, टेढ़े-मेढ़े गढ़, गेह सरल, 
रोते दर, हँसती दीवारें नीची छत, ऊँची मीनारें, 
मरघट की बूढ़ी नीरवता, मेलों की क्वाँरी चहल-पहल,
हर देहरी तेरी देहरी है, हर खिड़की तेरी खिड़की है, 
मैं किसी भवन को नमन करूँ, तुझको ही शीश झुकाता हूँ !
हर दर्पन तेरा दर्पन है !!

पानी का स्वर रिमझिम-रिमझिम, माटी का रव रुनझुन-रुनझुन, 
बातून जनम की कुनुनमुनुन, खामोश मरण की गुपुनचुपुन, 
नटखट बचपन की चलाचली, लाचार बुढ़ापे की थमथम, 
दुख का तीखा-तीखा क्रन्दन, सुख का मीठा-मीठा गुंजन, 
हर वाणी तेरी वाणी है, हर वीणा तेरी वीणा है, 
मैं कोई छेड़ूँ तान, तुझे ही बस आवाज़ लगाता हूँ !
हर दर्पन तेरा दर्पन है !!

काले तन या गोरे तन की, मैले मन या उजले मन की, 
चाँदी-सोने या चन्दन की, औगुन-गुन की या निर्गुन की, 
पावन हो या कि अपावन हो, भावन हो या कि अभावन हो, 
पूरब की हो या पश्चिम की, उत्तर की हो या दक्खिन की, 
हर मूरत तेरी मूरत है, हर सूरत तेरी सूरत है, 
मैं चाहे जिसकी माँग भरूँ, तेरा ही ब्याह रचाता हूँ !
हर दर्पन तेरा दर्पन है!!

Gopaldas "Neeraj" - गोपालदास "नीरज"

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